भागता बचपन
निगम के डर से भागते छोटे-छोटे दो पैर
थक कर जब रुकना चाहते हैं
पुलिस के डंडे का डर उन्हें रुकने नहीं देता।
जिस उमर में मानते हैं बच्चे अपने बाप को सुपर-हीरो
देखा है हमने उस उमर में, पुलिस से पिटते अपने बापों को।
नाजुक सी ऊँगली जो पकडती है माँ का आँचल
स्याह है आज, बुट-पालिस के रंगो से।
तोड़ता होगा कोई बालू का घरौंदा कहीं समुंद्र के किनारे
हमने अपने घरों को टूटते हुए देखा है।
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