भागता बचपन

April 4, 2007 at 11:29 am (Blogroll) (, , , )

निगम के डर से भागते छोटे-छोटे दो पैर

थक कर जब रुकना चाहते हैं

पुलिस के डंडे का डर उन्हें रुकने नहीं देता।

जिस उमर में मानते हैं बच्चे अपने बाप को सुपर-हीरो

देखा है हमने उस उमर में, पुलिस से पिटते अपने बापों को।

नाजुक सी ऊँगली जो पकडती है माँ का आँचल

स्याह है आज, बुट-पालिस के रंगो से।

तोड़ता होगा कोई बालू का घरौंदा कहीं समुंद्र के किनारे

हमने अपने घरों को टूटते हुए देखा है।

Leave a comment