डीनोटिफाइड – टूटते घरों का सच

March 16, 2007 at 12:08 pm (Blogroll) (, , , )

कुछ बातें हैं जो कभी नहीं बदलतीं। दिसम्बर 26, 1997 को मणीनगर में रहने वाले डीनोटिफाइड लोगों की बस्ती उजाङ दी गई। कारण था, कुछ लोग स्टेशन के पीछे वाले सङक के किनारे अवैध रूप से रहते थे। वैध अवैध, ये एक सिक्के के ही दो पहलू हैं। सिक्का किसके पास है, यह महत्वपूर्ण है…

यहाँ वे लोग रहते हैं जिन्हें समाज जन्मजात अपराधी मानता है। नाम के पीछे डब्गर, बंजारा, सांहसी लगा हो तो पुलिस को दूसरे किसी सबूत की ज़रूरत नहीं होती इन्हें अपराधी मानने के लिए। जब भी शहर में कोई अपराध होता है पुलिस इन्हें पकङ कर ले जाती है। लोगों को पता तक नहीं होता कि उन्हें किस अपराध के लिए गिरफ्तार किया जा रहा है। ये लोग मैप और खिलौने बेचकर, कान साफ करके पैसे कमाते हैं। आमदनी इतनी नहीं होती कि वे ठीक से एक समय भी परिवार के साथ खाना खा सकें। फिर शिक्षा, स्वासथ्य…

छोटे बच्चे जिन्हें स्कूल जाना चाहिए वे बूट पालिश के लिए जाते हैं। जीवन की मूलभूत आवश्यकताओँ से वंचित ये लोग गन्दगी में जीने को मजबूर हैं। चालीस साल से ये लोग यहाँ रह रहे थे और अचानक एक दिन म्युनिसिपाल्टी को यह ज़मीन अवैध दिखने लगी। 1972 में तत्कालीन सरकार ने इन लोगों को वचन दिया था कि यहाँ किसी प्रकार का निर्माण कार्य होने पर उन्हें कहीं और ज़मीन दी जाएगी। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बिना किसी पूर्व सूचना के उनके घर तोङे गए और कई बार म्युनिसिपाल्टी वाले उनका सामान उठाकर ले गए।

मार्च 22, 2006 इन लोगों ने डा0 गणेश देवी के नेतृत्व में म्युनिसिपाल्टी कमिश्नर के ऑफिस के सामने भूख हङताल की। तब कमिश्नर अनिल मुकीम ने यह वादा किया था कि इन लोगों को ज़मीन दी जाएगी और जब तक ज़मीन नहीं दी जाती, म्युनिसिपाल्टी वहाँ कोई तोङ फोङ नही करेगी।

समय बीता, अफसर बदले और म्युनिसिपाल्टी अपना वादा भूल गई। फरवरी 8, 2007 को मणीनगर बस्ती को फिर से तोङा गया।

आखिर म्युनिसिपाल्टी उन्हें हटाना क्यों चाहती है। जिस सङक के किनारे ये लोग रहते हैं उसका आवागमन के लिए ज्यादा उपयोग नहीं होता क्योंकि लगभग सभी गाङियाँ ओवरब्रिज का प्रयोग करती हैं। फिर सरकार को इस सङक की ऐसी क्या ज़रूरत है। इसका उत्तर छिपा है मध्यमवर्गीय संकुचित मानसिकता में। जब भी यह मध्यम वर्ग आँखों में उच्चवर्ग का सपना लिए घर से निकलता है और सामने इन गरीबो को पाता है तो उसका सपना तिलमिला उठता है। वह इससे मुक्ति चाहता है और इसका सबसे आसान तरीका है ऐसे गरीब लोगो को ही हटा दिया जाए। चाहे उनके पास रहने को घर नहीं हो, चाहे उनके बच्चे भूख और गर्मी से मर जाए। लेकिन इन्हें साफ सडक चाहिए।

1997 से घर टूटते आ रहे हैं। कई बच्चे गर्मी लगने से मर चुके हैं। लेकिन यह बातें कोई मायने नहीं रखती। शुरू से ऐसा हीं होता आया है और कुछ बातें बिल्कुल नहीं बदलती।

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